ऐ इंसान…..!
माना सच के लिए न लड़ना तेरी आदत है…
पर झूठ का साथ देना तेरी फ़ितरत तो नहीं ?
माना कोशिशों से घबराना तेरी आदत है …
पर दूसरों को सफल देख जलना तेरी फ़ितरत तो नहीं ?
माना किसी में अच्छाइयाँ न ढूँढना तेरी आदत है…
पर बुराइयों के पुल बांधना तेरी फ़ितरत तो नहीं ?
माना भाग्य पर भरोसा करना तेरी आदत है…
पर भाग्य के भरोसे बैठना तेरी फ़ितरत तो नहीं ?
माना खुद पर गुरूर करना तेरी आदत है….
पर दूसरों को बेइज्ज़त करना तेरी फ़ितरत तो नहीं ?
माना मंदिरों में प्रसाद चढ़ाना तेरी आदत है….
पर किसी भूखे को देख मुँह फेरना तेरी फितरत तो नहीं ?
ऐ इंसान सही- गलत के अंतर को जान।
इंसानियत अपना…. क्योंकि वही है तेरी असली पहचान।।