शादी की दावत (थोड़ा व्यंग ,थोड़ी सीख )

बिट्टू जी की शादी में पकवान बने मजेदार
क्या खाएं क्या ना खाएं सोच में पड़ गए यार


हमने कभी किसी को ना कहना ना सीखा था
इसलिए सब कुछ प्लेट में थोड़ा-थोड़ा परोसा था


सब कुछ प्लेट में परोस कर नए पकवानों का किया अविष्कार


कढ़ाई पकोड़ा, कोफ्ता मखनी, दाल कढ़ी बन गई,
तभी हमारी नजर गुलाब जामुन की चाशनी में डूबी हुई नान पर पड़ गई


घूर रही थी मुझे ऐसे ,उसका मेकअप खराब कर दिया हो जैसे


खैर अनमने मन से आधा अधूरा खाया,
खुद ही स्वादिष्ट खाने को बेस्वाद बनाया


जब प्लेट रखने चला था ,वहां एक होटल का कर्मचारी खड़ा था ,उसके हाथ में कागज पर मोटे मोटे अक्षरों में जड़ा था


“खाली पेट सोती है भारत की 19 करोड़ जनता “


यह पढ़कर प्लेट ना रख पाया, कोने में जाकर बचा हुआ खाना निपटाया


क्या आपको लगता है उन महाशय को हमें अन्न नहीं व्यर्थ करना चाहिए यह उसी दिन चला था पता…

नहीं ऐसा नहीं था उनके सामने लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे यह सवाल था खड़ा…


क्या निमंत्रण पत्र में यह लिखा था कि सब कुछ परोसना है जरूरी, नहीं तो रूठ जाएगी आलू और पूरी


सब कुछ जान कर भी बनते हैं अनजान और करते हैं अन्न का अपमान…

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