जैसा कि आप सबको ज्ञात है कि नवरात्रों का आगमन हो गया है, और आप सब यह भी जानते होंगे कि हर एक स्त्री में माता के नौ रूपों में से किसी एक रूप का वास ज़रूर होता है | पर क्या आप यह भी मानते है कि आज भी स्त्रीयों को अपने मान सम्मान के लिए संघर्ष करना पड़ता है….. कुछ पंक्तियों के द्वारा उनके मनोभाव व्यक्त करने की कोशिश की है… अगर आप भी सहमत हैं तो अपनी प्रतिक्रिया दें…. धन्यवाद |
ना आत्म मिला ना मिला सम्मान…
लगता है मैं हूं एक सामान….
ना अपनत्व की वर्षा हुई…
न जाने क्यों ऐसी मंशा हुई…
सब हंसकर बात करते हैं…
और पीठ पीछे वार करते हैं…
सब अपने हैं सब पराए…
लोगों का उद्देश्य हम समझ ना पाए….
कहते हैं असली हीरे की परख करता है जौहरी…
पर यहां बात ही कुछ और रही….
या तो तुम जौहरी नहीं या हम नहीं है हीरा….
क्योंकि ना तुमने समझी हमारी खुशी, ना समझी पीड़ा….
सुनाने में निकाली आधी उम्र….
सुनने का नहीं था कर्म…
अब कुछ अच्छा होगा, कल खूब बढ़िया होगा, यह सिर्फ था एक भ्रम….
क्या इसको ही कहते हैं स्त्री धर्म निभाना…..
अपना जीवन ओरों के लिए समर्पित कर जाना…..
ओ स्त्री! तुम कभी मत आना….
ना तुम्हें आज समझा है ना कल समझेगा यह जमाना……
हनी जैन