कुछ देर ठहर जा ऐ जिंदगी…

कुछ देर ठहर जा ऐ जिंदगी..
इस खुदगर्ज़ दुनिया में मुझे भी मतलबी बन जाने दे।

अब तक चली हूँ अपने उसूलों पर..
ज़रा इस दुनिया के उसूल मुझे आज़माने तो दे।

सच कहकर बहुत दूर हो गई हूँ सबसे…
झूठ बोलकर कुछ का मन बहलाने तो दे।

थोड़ी सी बुराई मैं भी करके देखूँ..
ईर्ष्या की आग में मैं भी जलकर देखूँ…

थोड़ा किसी का मज़ाक उड़ाने तो दे..
तानों से किसी को सताने तो दे।

मेरी गीली आँखें पिघला न सकी जो मन..
उन्हें मगरमच्छ के आँसू दिखाने तो दे।

बस कुछ देर ठहर जा ए जिंदगी..
इस खुदगर्ज दुनिया में मुझे भी मतलबी बन जाने दे …

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