होली का त्यौहार है आया रंग बिरंगी खुशियां लाया
ठहरों ठहरों रुको रुको कहाँ है ये खुशियां ज़रा ये तो बताओ ,
जो लोग बाँटते है खुशियां ज़रा उन से तो मिलवाओ |
इस जहां में जहाँ हर एक इंसान एक दूसरे से जलता है ,
फिर होलिका दहन करने से क्या मिलता है|
जो बात “हो ली ” उसे भूल जाओ ये त्यौहार हमें सिखाता है,
दिल में कोई बैर भाव ना रखो ये ही हमें समझाता है|
इस रंग बदलती दुनिया में प्रहलाद जैसा विश्वास कहाँ, सब कुछ जानते हुए भी होलिका की गोद में बैठा रहा|
एक अजीव चादर ने वायु के वेग से प्रहलाद को बचा लिया, और अच्छाई को बुराई से जीता दिया|
अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ और भी अच्छा बनना हम चाहते है ,
पर “हमेशा मैं ही क्यों “?इस सवाल के आगे झुक जाते है |
होली का त्योहार तपस्या
विश्वास भाव का है यहाँ
प्रह्लाद ने रखा था विस्वाश
प्रभु नरसिंह रूप प्रकटे थे यहाँ।।
उड़े विश्वास के रंग वहाँ पर
प्रतीक गुलाल हैं आज यहाँ
जिसने देखा चकित रह गया
ऐसे होते है भगवान यहाँ।।
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