अपने अंदर के द्वंद को
अंतर्द्वंद्व लिखती हूं
कई सवाल अपने आप से पूछ कर
कटहरे में खुद को खड़ा करती हूं
कई देखे सुने युद्ध ,महायुद्ध
महाभारत युद्ध, प्रथम युद्ध
जो सब जीते गए
बिना किसी अंतर्द्वंद्व के
सब से बड़ा युद्ध जो था अपने आप से
जो था अंतर्द्वंद्व
अंतर्द्वंद एक शीत युद्ध
अपने दिल और दिमाग़ के साथ था
कभी दिल तो कभी दिमाग ठीक होता था
इस कश्मकश में दिल और दिमाग में
एक युद्ध छिड़ जाता था
सही ,गलत,अच्छा, बुरा में परख करना ही
एक बहुत बड़ा अंतर्द्वंद बन जाता था
हर बार एक सही निर्णय लेने के लिए
बहुत बड़े अंतर्द्वंद से होकर गुजरना पड़ता था
कई फैसले ऐसे होते ,जिस में अपनों का ही
दिल बहुत दुखाया जाता था
जीत किसी की भी हो
हारता मेरी भावनाओं का सैलाब ही था
जो आंसू के रूप में बाहर आता था
दूसरे इंसान से लड़ना आसान होता था
मुश्किल तो अपने आप से लड़ना था
मेरा मन मेरे डर को जानता था
सही राह पर आते-आते
एक नए मार्ग पर लाकर खड़ा कर जाता था
दिल और दिमाग के बीच में शुरू होता था
एक नया अंतर्द्वंद
आज का हर इन्सान अंतर्द्वंद से जूझ रहा था
शांति का स्वरूप तो शून्य में विलीन हो चुका था
ना होगा कब तक होगा मन शांत
ना अंतर्द्वंद खत्म होगा और
ना ही शांति और ना ही मोक्ष मिलता है
इस अंतर्द्वंद्व में कभी मेरे साथ मेरा खुदा भी रोता है।
अंतर्द्वंद्व होता ही ऐसा हैं।
Written By : Ms. Pooja Bharadawaj
(Published as received by Writer)