वजूद

आ, आज, एक बार फिर
मिल बैठते हैं,
कुछ तू हमें सुना
कुछ हम तुझे सुनाते हैं,
खुशियों – गमों को
एक दूजे से साझा कर लेते हैं
मेरी खुशियों की पोटली
तेरे अंदर ही तो कैद रहती है
मेरे गमों की चिता
तेरे अंदर ही तो सुलगती है।

तुझ बिन मैं, मुझ बिन तेरी भी
धक धक, कैसे कहां, आगे बढ़ती है
ओढ़ लेते हैं जब हम, एक दूजे को
तब ही तो श्वांस-श्वांस से मिल के
नई श्वांस उत्पन्न करती है।

चोट मुझे लगती है तो
दर्द तुझे होता है,
तेरे दर्दने से तो मेरा संपूर्ण
अस्तित्व ही रोता है
खेल है तेरे मेरे विच
कुछ ऐसा,
दोनों का एक दूजे बिन
‌‌ एक पल भी ना गुजरता है।

ना तन्हां मैं चल सकूंगी
ना तन्हां तुम चल सकोगे
मिलकर ही तो चलाते हैं
हम दोनों एक दूजे को
‘दिल’, ‘जिस्म’, का सर्वोत्तम
महत्वपूर्ण हिस्सा है,
‌ ‘जिस्म’, बिन ‘दिल’ का भी
जहान में ‘कहां’ कोई ‘किस्सा’ है।

सुन! तेरी धड़कन जब तक मुझमें,
मुझ में तेरी धड़कन जब तक धड़केगी
‌ एक दूजे से वजूद हमारा कायम रहेगा।

Written By : Ms. Ridima Hotwani

(Published as received by writer)

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