जब अपने, आंखों के सामने
होते हुए भी दूर हो जाते हैं
तब तकलीफ होती है
जब प्यार की जगह
पैसों की कीमत बढ़ जाती है
तब तकलीफ होती है
जब रिश्तो की खनक से
महकते आंगन में तकरार होती है
तब तकलीफ होती है
जब अपने भी बेगानों की
कतार में खड़े हो जाते हैं
तब तकलीफ होती है
जिस घर के कोने कोने को
अपने हाथों से सजाते थे
अब वहां जाने में भी
जब कदम डगमगाते हैं
तब तकलीफ होती है
जिन तसवीरों से अपने कमरे को सजाते थे
अब वह किसी कोने में रखे जाते हैं
तब तकलीफ होती है
हर लम्हा बसा था जिसकी आंचल में
जब वह अजनबी से बन जाते हैं
तब तकलीफ होती है…
Written By: Ms. Payal Sonthalia
(Published as received by writer)