ए ज़िन्दगी

ऐ ज़िन्दगी
क्यों हर पल अपने बदले रंग दिखाती हो
बहुत खुश है हम पर क्यों हर पल गम को रेस में जिता जाती हो
माना कि खुश रहना बेशक हर कोई चाहता है
पर क्यों उस खुशी के सागर में अपने गम के आंसू ले आती हो
क्यों हमें हर एक पल में एक नया लेसन सिखाती हो
क्यों कुछ पल पुराने लेसन को दोहराने नहीं देती हो
है मानते है सीखना ही एक मात्र लक्ष्य है जीवन का
पर …
हा मानते है आज थोड़े ऊपर है मुकाम में
पर कई अपने पीछे छूट गए
किसके साथ जश्न मनाए
जब कई अपने हमसे रूठ गए
क्या करें उस मुकाम का
जब दूसरों को खुश ना रख पाए
रूठना तो सीख गए हम बड़े होकर
पर मनाना हम क्यों भूल गए
लौटा दो हमें वो बचपन
जब सब अपने प्यार लूटा के लुट गए
ऐ ज़िन्दगी…..

Written By : Ms. Shristi Dubey

(Published as received from writer)

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