न करूं परिभाषित “आस्था” को कभी
न “विश्वास” पर ही कोई सवाल करना।
हृदय में जोत जलाई है जो तुमने
मौन से रुठकर, न उस पर बवाल करना।।
दिया और बाती का अद्भुत गठबंधन
भाव का शब्दों के संग, सुसज्जित संगम
सांझ वेश में धरा का, गगन को आलिंगन
साए से लिपटते निज अंश को मां का चुम्बन।
हर कर्म में “आस्था” है बस पूजी जाती
सृष्टि के आरम्भ में “विश्वास” को है नमन।
संकीर्णता में सिमटती सोच को परे रख
जीवन की हर विधा में उत्कृष्टता पर विचार करना।।
न करूं परिभाषित “आस्था” को कभी
न “विश्वास” पर ही कोई सवाल करना।।
Written By : Ms. Indu Tomar
(Published as received by writer)