बचपन

खेलकूद में बीता बचपन ,ना थी मन में कोई उलझन

एक रुपए में आती थी टॉफी चार , खरीदते थे बाजार जा कर बार-बार

स्टील के टिफिन में आलू और आम का अचार, recess में मिलकर खाते थे सब यार

जब कभी मम्मी को होता था बुखार और लंच नहीं होता था तैयार, कैंटीन की 5 रुपए की पेटीज लगती थी मजेदार

कॉपी में A grade, good, very good की गिनती करते थे ,”मेरे तुझसे ज्यादा है” यह कह कर ही खूब खुश हो लेते थे

जब आने वाली होती थी अपनी reading की बारी, तब साथ वाले से पूछते थे ” कौन सी वाली लाइन पर हैं यार ” उसी शब्द पर उंगली रखकर कर लेते थे तैयारी

कभी-कभी गलत भी हो जाता था यह फंडा, और खाना पड़ता था हमको डंडा

मैम बोलती थी अपना फेवरेट डायलॉग “physically present mentally outside the class “सच में हम तो देख रहे थे बाहर from window glass

आज भी बचपन के पल याद आते हैं ,कभी हंसाते हैं तो कभी रुलाते हैं

फिक्र और जिम्मेदारी किसे कहते हैं यह अब हमने है जाना ,काश फिर से लौट आए वो बचपन का जमाना

©Honey Jain

2 Comments

    1. सच में क्या दिन थे वो ….Thank you for your special words Divya…❤

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