गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।धियो यो न:प्रचोदयात् ।।

गायत्री मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई आइये जानें ..
महर्षि राजा गाधि के पुत्र विश्र्वामित्र ब्रह्मतेज अर्जित करने के लिए कठिन तपस्या करने लगे| उनका ध्यान तपस्या से भंग करने के लिए देवताओं ने मेनका नामक अप्सरा को भेजा| उस सुंदरी को ढूंढने के लिए ऋषि वन में भटकने लगे| तभी आकाशवाणी हुई- वह तो माया थी, ठगने आयी थी चली गयी| आपकी तपस्या विरत हो गयी है|

विश्र्वामित्र पुन: तपस्या में लीन हो गए|परन्तु अनेक बार उनकी तपस्या भंग हुई| एक बार उन्होंने
एक त्रिसुंख नरेश को स्वयं स्वर्ग भेज दिया, जब देवताओं ने इसका विरोध किया तब वें अलग स्वर्ग और सृष्टि की रचना में लग गए, तब देवताओं के अनुरोध पर विश्र्वामित्र नवीन सृष्टि रचना से विरत हो गए जिससे उनकी तपस्या को गहरी हानि पहुँची| इसी प्रकार एक बार क्रोध में आकर उन्होनें अपने सौ पुत्रों को तुरंत मरने का श्राप दे दिया था|

विश्र्वामित्र ने विचार किया की लाख प्रयत्न करने पर भी मैं तपस्या में सफल नहीं हो पा रहा हूँ| माया- वासना, अहंकार, क्रोध के रूप में कब मुझमें प्रवेश करती है पता ही नहीं चलता| प्रतीत होता है मैं अपने बल से इन बाधाओं पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता| अंततः विश्र्वामित्र ने परमात्मा की शरण ली की —

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।धियो यो न:प्रचोदयात् ।।

अर्थात ॐ शब्द से उच्चारित, तीनो लोकों (पृथ्वी लोक, अंतरिक्ष लोक और स्वर्ग लोक ) में तत्वरूप से व्याप्त ज्योतिर्मय परमात्मा आपके तेज का हम ध्यान करते हैं| आप हमारी बुद्धि को सन्मार्ग से प्रेरित करें| इस प्रकार स्वयं को भगवान् के प्रति समर्पित कर विश्र्वामित्र तपस्या में लीन हो गए| माया उनकी परिक्रमा कर लौट गयी और सभी वेद उनका वरण करने लग गए|
इसलिए गायत्री मंत्र सभी मंत्रो में श्रेष्ट माना जाता हैं|

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s