एक दिन नारद जी विष्णु भगवान से मिलने गए। विष्णु जी ने उनका बहुत आदर सत्कार किया। नारद जी के जाने पर विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से कहा -” हे ! लक्ष्मी जहाँ नारद जी बैठें थे उस स्थान को गाय के गोबर से लीप दो। नारद जी अभी बाहर द्वार पर ही खड़े थे। उन्होंने सब सुन लिया और वापस आकर विष्णु जी से पूछा – ” भगवन् जब मैं आया तो आपने मेरा बहुत सम्मान किया , परन्तु मेरे जाने पर आपने उस स्थान को गोबर से लीपने को कह दिया। विष्णु जी बोले – ” नारद आप देवऋषि हैं इसलिए मैंने आपका सम्मान किया और देवी लक्ष्मी से ऐसा इसलिए कहा क्योंकि आपका कोई गुरु नहीं हैं। जिस स्थान पर कोई गुरु रहित व्यक्ति बैठ जाता है, वह स्थान अशुद्ध हो जाता है।
यह सुनकर नारद जी ने कहा – भगवान् आप बिलकुल सत्य कह रहे हैं पर मैं गुरु किसे बनाऊँ ?
विष्णु जी बोले – हे ! नारद धरती पर जो सबसे पहला व्यक्ति मिले उसे अपना गुरु बना लेना। नारद जी ने विष्णु जी को प्रणाम किया और धरती पर चले गए। जब वे धरती पर पहुंचे तो उन्हें सबसे पहले एक मछुवारा मिला। उन्होंने मछुवारे से अपना गुरु बनने के लिए कहा तो वह मान गया।
नारद जी वापस विष्णु जी की पास गए और कहा प्रभु वो मछुवारा तो कुछ भी नहीं जानता, वो मुझे क्या सिखाएगा ? इस पर विष्णु जी को क्रोध आ गया और उन्होंने कहा – ” नारद गुरु की निंदा करते हो , मैं तुम्हे श्राप देता हूँ की तुम्हे 84 लाख योनियों में घूमना पड़ेगा। नारद जी ने क्षमा माँगते हुए कहा – प्रभु इस श्राप से बचने का उपाय भी बता दीजिये। विष्णु जी ने कहा इसका उपाय अपने गुरु से जाकर पूछो।
नारद जी ने सारी बात अपने गुरु (मछुवारा) को बताई। गुरु जी ने कहा – आप भगवान् से जाकर कहिये की 84 लाख योनियों की तस्वीरें धरती पर बना दें। फिर आप उस पर लेट कर घूम लेना और विष्णु जी से कहना की मैं ८४ लाख योनियों में घूम आया अब मुझे क्षमा करें।
नारद जी ने विष्णु जी की पास जाकर ठीक वैसा ही किया जैसा उनके गुरु ने बताया था और कहा – नारायण मुझे क्षमा करें मैं आगे से कभी गुरु निंदा नहीं करूंगा। यह सुनकर विष्णु जी ने कहा देखा जिस गुरु की आप निंदा कर रहे थे उसी ने मेरे श्राप से आपको बचा लिया। गुरु की महिमा अपरम्पार हैं।
गुरु गूंगे गुरु बाबरे, गुरु की रहिये दास ।
गुरु जो भेजे नरक को, स्वर्ग की रखिये आस।।